Shree Shree 1008 Kashi Baba Jivan Charitra

kashi baba

परमपिता परमेश्वर के श्री चरणों में कोटि कोटि प्रणाम के साथ प्रातः एवं सांध्य स्मरणीय हम सब के आराध्य श्री श्री 1008 श्री काशी बाबा महाराज जी का जीवन चरित्र बुद्धि के दाता भगवान मां पार्वती एवं श्री महादेव के सुपुत्र श्री गणेश जी ,के श्री चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम निवेदित करते हुए विद्या की देवी मां सरस्वती को हमारा कोटि-कोटि नमन भाई और बहनों एवं प्रजापति समाज के मेरे सभी बुजुर्ग तथा युवा साथियों को यथा योग्य प्रणाम आप सबके आशीर्वाद फल स्वरुप परमपिता परमेश्वर की असीम कृपा से एवं श्री श्री 1008 श्री काशी बाबा की विशेष अनुकंपा से बाबा महाराज का चरण सेवक बाबा की जीवन शैली को लेखांकन करते हुए आप सबके अवलोकन हेतु समर्पित कर रहा है तो आइए हम आपको वर्तमान में से अतीत की ओर वापिस ले चलने का प्रयत्न करते हैं मेरे भाई और बहनों जैसा कि आप सभी जानते हैं कि काशी बाबा हम सब प्रजापति यों के लिए ही पूजनीय नहीं है वल्कि वह संपूर्ण मानव समाज के लिए श्रद्धा एवं पूजा के पात्र हैं आप सभी के आशीर्वाद से हम आपको बाबा का जीवन चरित्र समर्पित कर रहे हैं मित्रों वर्तमान ग्वालियर ऐतिहासिक नगर जो कि मध्य प्रदेश का एक मात्र विश्व प्रसिद्ध नगर है जिसने संगीत के क्षेत्र में तानसेन जैसे विश्वविख्यात संगीतकार को मानव समाज को समर्पित किया है उसी ऐतिहासिक ग्वालियर नगर से लगभग 55 किलोमीटर दूर मुरार तहसील अंतर्गत ग्राम बेहट गांव में आज से लगभग 550 वर्ष पूर्व प्रजापति समाज के अनमोल रत्न श्री काशी बाबा महाराज जी का जन्म हुआ था लेखक श्री श्री 1008 श्री काशी बाबा महाराज की प्रेरणा फल स्वरुप अपने चिंतन तथा मनन उपरांत एवं अनुभव के आधार पर ऐतिहासिक तथ्यों के साथ लौकिक किंवदंतियों को आधार मानते हुए तथा जनश्रुति अनुसार बाबा महाराज के जीवन चरित्र का लेखन कर रहा है आइए मित्रों ग्राम बेहट रियासत काल मैं प्राकृतिक झिलमिल नदी के किनारे बसा हुआ ग्राम था जो उस समय तत्कालीन ग्वालियर रियासत के अधीनस्थ गोहद जागीर के जागीरदार जाट राणाओं की एक जागीर के रूप में बसा हुआ था उस समय बेहट ग्राम की समस्त जनता तत्कालीन राणा छत्रसाल द्वारा निर्मित छत्रसाल दुर्ग में निवासरत थी दुर्ग के बाहरी तरफ एक विशालकाय खाई थी उस खाई में वर्ष भर जल भरा रहता था जिससे शत्रु से उसके लिए की सुरक्षा की जाती थी ग्राम बेहट से लगभग 3 किलोमीटर दूर जंगल में ग्राम गूंजना बसा हुआ था जिस के नजदीक ऐतिहासिक प्रसिद्ध शिव मंदिर एवं श्री श्री 1008 श्री सिद्ध गुरु महाराज की पवित्र तपोवन भूमि है वर्तमान में भी वह शिव मंदिर जिसकी तीन भुजाएं आज भी भूदेवी में घुसी हुई है और बीच में देवों के देव महादेव की स्थापना लिंग स्वरूप में है यह वही शिव मंदिर है जहां विश्व प्रसिद्ध सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक तानसेन जी को मां सरस्वती की प्राप्ति भगवान देवा देव महादेव के आशीर्वाद कल स्वरूप हुई थी किंवदंतियों के अनुसार तानसेन उर्फ तन्ना गडरिया जाति के बालक थे और जन्मजात गूंगे थे वह नित्य प्राय काशी बाबा जी के साथ सिद्ध गुरु स्थान पर जंगल में अपने भेड़ बकरियों के साथ पशुओं को चराने के लिए आते थे और नित्य एक बकरी का दूध शंकर जी की लिंग रूपी प्रतिष्ठित मूर्ति पर अर्पित करते थे जिससे प्रसन्न होकर कालांतर में भगवान शिव ने पुणे बाणी प्रदान कर अमर कर दिया आप पाठक लोग यह सोच रहे होंगे कि बार-बार लेखक द्वारा तानसेन जी का काशी बाबा की कथा में उल्लेख क्यों किया जा रहा है तो उस प्रश्न का उत्तर यह है कि श्री बाबा महाराज का जन्म प्रजापति जाति में हुआ और बाबा महाराज एवं तानसेन जी गरीब जाति से व परिवार से होकर घनिष्ठ मित्र थे चीन को भगवत कृपा फल स्वरुप देह त्याग करने के उपरांत एवं देव धारण के दौरान तत्कालीन राजशाही व्यवस्था के द्वारा सम्मानित किया गया पुनः हम आपको काशी बाबा के परिवार की ओर ले चलते हैं भाई और बहनों तत्कालीन बेहट ग्राम प्रकृति के आंचल में दुर्गम पहाड़ियों के बीच कल कल करती हुई पवित्र पावन झिलमिल नदी के किनारे बसा हुआ बेहद सुंदर ग्राम था जोकि विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं एवं शत्रु भय से तत्कालीन राणा राव नरेंद्र सिंह के द्वारा छत्रसाल दुर्ग में जनता जनार्दन को सुरक्षात्मक कारणों से रखा गया काशी बाबा भी अन्य परिवारों के साथ इसी छत्रसाल दुर्ग में निवास रखें विधाता की विशेष कृपा इनके परिवार पर थी इनके पूज्य पिताश्री हरप्रसाद जी एवं पूज्य माता गंगा देवी दोनों ही देवों के देव महादेव की अनन्य उपासक एवं भक्त थे गांव के बीचो बीच एक छोटा सा सुंदर सा भगवान का मंदिर था जिस के पुजारी परम पूज्य भगवंत प्रसाद जी बहुत ही नेक एवं उदार व्यक्तित्व के स्वामी थे नित्य ही मंदिर पर भक्तजन उपस्थित होते और प्राप्त एवं सांध्य काल में भजन पूजन अर्चन बंधन कर अपने आप को कृतार्थ करते थे काशी बाबा महाराज के पूज्य पिताश्री बहुत अच्छे गायक एवं ढोलक वादक थे जो आवश्यकता अनुसार मंदिर पर भजन कीर्तन में अपनी प्रस्तुति देते थे जिसकी वजह से सभी भक्त जनों का उन्हें अपार स्नेह भी प्राप्त होता था एक दिन अवसर प्राप्त होते ही हर प्रसाद जी ने पुजारी भगवंत प्रसाद जी से निवेदन किया कि महाराज हमारी कुटिया बिना लाल के सुनी है क्या परमात्मा की कृपा हमारे ऊपर भी होगी हमारे आंगन में भी बालक की किलकारियां गूंजेगी।। क्या हमारी धर्मपत्नी की गोदी भी भरेगी यह कहते कहते उनकी आंखों से आंसू बहने लगे उदार हृदय के पुजारी भगवंत प्रसाद जी ने देवों के देव महादेव से इस दुखियारे की प्रार्थना सुनने की कामना की भगवान की प्रेरणा फल स्वरुप आत्मचिंतन उपरांत पुजारी भगवंत प्रसाद जी ने हरप्रसाद जी से कहा कि आप दुखी ना हो शीघ्र ही जगत आराध्य देवी भगवती मां पार्वती एवं महादेव की कृपा से आपके घर में भी बालक की किलकारियां गूंजने आप शीघ्र ही एक दिव्य अलौकिक पुत्र के सौभाग्यशाली माता-पिता बनोगे भगवान की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी उस रात्रि मंदिर से वापस आने पर हर प्रसाद जी ने अपनी धर्मपत्नी गंगा देवी से मंदिर में हुए वार्तालाप की चर्चा की गंगा देवी ने भगवान का आभार प्रकट करते हुए पुजारी जी को कोटि-कोटि आभार प्रकट किया देव योग से कुछ माह उपरांत गंगा देवी की गोद भर गई और घर की जिम्मेदारियां बढ़ने से हरप्रसाद जी का आगमन मंदिर पर कुछ कम हो गया नियत समय पर उनके घर में बालक का जन्म हुआ और वह बालक दिव्य आभा लिए जन्मा बालक के जन्म का समाचार प्राप्त होते ही हर प्रसाद जी ने अपनी बर्तन बनाने की यज्ञशाला की पवित्र मिट्टी से भगवान देवा देव महादेव की समस्त परिवार जनों की श्री मूर्तियों का सृजन किया और कुछ दिनों पश्चात उन मूर्तियों सहित मंदिर में पुजारी जी के समक्ष उपस्थित हुए पुजारी जी ने काफी दिनों से मंदिर ना आने का कारण पूछा तो भगवत भक्त हर प्रसाद जी ने पुजारी जी को अपने घर में बालक के जन्म होने का सुखद समाचार सुनाया और निवेदन किया कि भगवान श्री महादेव की कृपा से मेरे घर में बालक का जन्म हुआ है और मैं उस बालक के जन्म की खुशी के अवसर पर अपने हाथों से निर्मित यह कुछ मूर्तियां आपको आभार स्वरूप भेंट करने के लिए लाया हूं अतः मेरा आपसे निवेदन है कि आप इन को स्वीकार करें पुजारी जी ने बड़े ही आदर एवं सत्कार सहित मूर्तियों को ग्रहण किया और भगवान से बालक के दीर्घायु होने की कामना की इस अवसर पर उपस्थित ग्रामीण जनों ने हरप्रसाद जी को बहुत-बहुत बधाइयां दी हर प्रसाद जी ने पुजारी जी से निवेदन किया कि महाराज आपके आशीर्वाद से जिस बालक का जन्म हुआ है उसका नामकरण भी आप कर दें तो हमारे ऊपर बड़ी कृपा होगी

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काशी बाबा नाम करण संस्कार

पुजारी भगवंत प्रसाद जी ने देवाधिदेव महादेव के श्री चरणों में बालक के नामकरण संस्कार के लिए निवेदन किया कुछ पल के लिए अपने नेत्रों को बंद कर आप पर चिंतन करने लगे देवाधिदेव महादेव की प्रेरणा से उन्हें आत्मबोध हुआ और वह मुस्कुराने लगे कुछ क्षण पश्चात नेत्रों को खोलने के बाद उन्होंने हर प्रसाद जी से कहा कि भाई आपको बधाई हो काशी में निवासी भगवान शिव की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से जिस बालक का जन्म आपके घर हुआ है उसका तो नामकरण संस्कार स्वयं महादेव ने कर दिया है उस बालक का नाम आज से इस भू लोक के लिए काशीराम होगा जिसे लोग प्यार से कशिया कह कर बुलायेंगे ।। और यह बालक दिव्य आत्मा एवं उदार हृदय का स्वामी होगा भविष्य में लोक उद्धारक बनेगा इस प्रकार से हमारे श्री काशी बाबा महाराज का नामकरण संस्कार संपन्न हुआ आगे हम आपको बाबा की बाल लीला की तरफ ले चलते हैं भक्तजनों अब हम आपको श्री काशी बाबा महाराज ने बाल काल जो लीलाएं की उनका भी आपको अवलोकन करेंगे धन्यवाद

काशी बाबा बाल लीलाएं

भक्तजनों बालक काशीराम लगभग जय महाकाल चुका है उसके दिव्य स्वरूप को देखकर महिला एवं पुरुष एकटक निहारते ही रहते हैं। काशीराम की माता अपने बालक को लोगों की बुरी नजर से बचाने के लिए तमाम उपाय करती हैं कहीं माथे पर काला टीका लगाती हैं तो कभी-कभी उसकी नजर उतारने के लिए अन्य उपाय भी करती हैं क्योंकि मां का हृदय हमेशा अपने बालक की सुरक्षा के प्रति चिंतित रहता है बालक के जन्म के पश्चात जो भी बालक को देखता और बातें करने का प्रयास करता कभी-कभी भक्त लोग जब आपस में बालक के समक्ष जय जय सियाराम हर हर महादेव करते तो बालक संत की भांति हाथ उठाकर आशीर्वाद प्रदान करता और लोग प्रसन्न होकर आपस में कहते कि देखो काशी हमें आशीर्वाद दे रहे हैं लेकिन भविष्य को कोई नहीं जानता काशी बाबा के माता पिता अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त थे अचानक माता किसी कार्य से घर के अंदर आती है तो देखती है कि बालक जिस डलिया में सो रहा था उसमें से उठकर घुटनों के बल रेंगता हुआ चलने का प्रयास कर रहा है माता को थोड़ा भय भी हुआ और प्रशंसा भी हुई उन्होंने दौड़ कर अपने लाला को उठाया और माथा चूमा दूध पिलाने के पश्चात पुनः सुला दिया।। एक दिन माता पिता बर्तन बनाने के लिए मिट्टी तैयार कर रहे थे अचानक माता ने देखा कि लाला चाक के पास डण्डा लगाकर चाक घुमा रहा है।। माता ने आवाज देकर लाला के पिता को बुलाया अब उन्हें बालक की जगह एक संत दिखाई पड़ा कुछ पलों पश्चात वह दृश्य ओझल हो गया और स्वयं देवाधिदेव महादेव बालक के साथ बैठकर बालक को चाक चलाना सिखा रहे हैं थोड़ी देर पश्चात न वहां बालक था और ना ही महादेव दोनों पति पत्नी आश्चर्य में पड़ गए कि अचानक काशी राम ने आकर मां को पकड़ लिया और माता से कहा मां मैं भूखा हूं मुझे भोजन दे दो मां अपने लाडले को घर के अंदर ले गई और बड़े प्यार से भोजन कराया बहुत-बहुत धन्यवाद

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काशी बाबा शिक्षा-दीक्षा

बालक काशीराम का शारीरिक शोष्ठव ऐसा आकर्षित था, जो उन्हें देखता देखता ही रह जाता।। ऊंचा ललाट ,दिव्य आंखें ,कोमल रूधिर ओष्ठ, सुंदर नासिका,छोटे छोटे कर्ण, तेजस्वी चेहरा। जो भी उन्हें देखता वह उनके सौंदर्य पर मोहित हो जाता माता अपने सुंदर लाल को देखकर हमेशा प्रसन्न रहती। सभी पिता ओं की तरह उनके पिता हरप्रसाद जी को भी उनकी शिक्षा के लिए चिंता हुई और उन्होंने स्वामी भगवंत पुजारी जी से बालक की पढ़ाई की चर्चा की पुजारी जी ने तत्काल उनकी समस्या का समाधान किया और उन्हें ग्राम गूंजना स्थित सिद्ध आश्रम मैं शिक्षा हेतु जाने के लिए प्रेरित किया इसके लिए उन्होंने हरप्रसाद जी से कहा कि आप आश्रम जाकर पंडित परमेश्वर शुक्ला जी को मेरा यह पत्र सौंप देना और वह निश्चित ही अपने आश्रम में बालक को शिक्षा प्रदान करने में मददगार बनेंगे एक दिन बालक कसिया को लेकर उनके पिता सिद्ध गुरु आश्रम पर पहुंचे और गुरुदेव से सादर प्रणाम कर निवेदन किया है कि हे भगवान आप कृपा करके मेरे इस बालक को भी शिक्षित करने की कृपा करें देव योग से पंडित परमेश्वर शुक्ला उस युग के दिव्य दृष्टि धारक स्वामी थे उन्होंने अपनी भगवत भक्ति से प्रेरित होकर इस अनुपम बालक को देखा और पुजारी भगवंत प्रसाद जी के पत्र को पढ़कर बालक को अपने आश्रम में नियमित रूप से शिक्षा हेतु भेजने के लिए पिता को निर्देशित किया बालक कशिया और तन्ना दोनों मित्र गुरुदेव की कृपा से अपने पशुओं सहित गुरु आश्रम में नियमित रूप से आकर शिक्षा ग्रहण करने लगे जंगली क्षेत्र में पशुओं को चढ़ने के लिए छोड़ देते गुरु आश्रम की साफ सफाई करते और गुरु आज्ञा अनुसार अन्य कार्यों में भी सहायक बनते गुरुदेव उनकी गुरु भक्ति और सेवा भावना से प्रसन्न हुए और उन्होंने उस समय की समस्त विद्याओं का ज्ञान इन बालकों को कराया रुचि अनुसार बालक तन्ना महादेव की कृपा से वाणी को प्राप्त कर संगीत के क्षेत्र में सिद्धहस्त हुआ और अपनी संगीत साधना के बल पर बेहद से होता हुआ रीवा सम्राट बघेल राजा रामचंद्र बघेल के दरबार की शोभा बना और संगीत के क्षेत्र में जब उनकी ख्याति हिंदुस्तान के सम्राट आगरा नरेश सम्राट अकबर पर पहुंची तो अकबर ने रीवा पर चढ़ाई कर दी समझौते में उन्होंने तानसेन को रीवा सम्राट से मांगा रीवा का हित जानकर महाराज रामचंद्र से कहा के आप मुझे जनहित की खातिर अकबर को सौंप दें और इस प्रकार तन्ना आगे जाकर मियां तानसेन के रूप में अकबर के नवरत्नों में से एक हुए अब पुनः हम आपको आश्रम पर ले चलते हैं काशीराम जी ने गुरु कृपा से तत्कालीन मंत्र तंत्र यंत्र सभी विधाओं में निपुणता हासिल की गुरुदेव की आज्ञा अनुसार उन्होंने विद्या का दुरुपयोग न करने का वचन दिया और विद्या का सदुपयोग जनहित में करने का गुरु जी को वचन दिया लेकिन विधाता को जो मंजूर होता है वही होता है बालक काशीराम अपनी विद्या में इतना निपुण था जब चाहता तब बादलों की छाया कर लेता आवश्यकता पड़ने पर बादलों से वर्षा करा देता इस प्रकार के कई चमत्कार उनके द्वारा अपने बाल शखाओं के आग्रह पर समय-समय पर किए गए ।एक दिन इसकी चर्चा किसी ने उनसे पिता से की। पिता द्वारा जंगल में वृक्षों के पीछे छुप कर उनके यह चमत्कार देखे गए । घर में जलाने के लिए कंडों की आवश्यकता पड़ती तो पिता ने उन्हें जंगल से कंडे एकत्रित करने के लिए कहा कांशीराम ने अपनी विद्या के बल से एक ही स्थान पर जंगल में बिखरे हुए गाय के गोबर को कंडो में परिवर्तित कर एकत्रित किया और घर ले आए अब तो पिता भी उनसे थोड़ा सा भय खाने लगे। पिताजी द्वारा भी उनसे विद्या का सदुपयोग करने का वचन लिया गया और मेहनत तथा ईमानदारी से अपना कार्य पूर्ण करने का वचन भी लिया इस प्रकार पिता द्वारा अपने बच्चे को अच्छे संस्कार प्रदान किए गए ।।कालक्रम के अनुसार उनकी अल्प अवस्था में ही लगभग 12 वर्ष की उम्र मैं विधाता ने उनके पिता का साया उनके सिर से छीन लिया अब तो काशीराम के सिर पर जिम्मेदारियों का बोझ आ गया और उन्होंने परिवार में होने वाले कृषि कार्य तथा मिट्टी से निर्मित बर्तन इत्यादि का कार्य और पशुपालन को नियमित रूप से करना प्रारंभ कर दिया इस दौरान पारिवारिक धर्म का पालन करते हुए गुरु आश्रम जाना नहीं छोड़ा कहते हैं समय बड़ा बलवान होता है एक दिन राणा नरेंद्र सिंह के यहां दुर्ग में विशेष भोज का आयोजन किया गया जिसमें उनकी अनुपस्थिति में उनकी माता द्वारा मिट्टी के डब्बू पहुंचाए गए भोज के दौरान डब्बू कम पड़ने पर माता को बिना भोजन कराएं और डब्बू लाने के लिए भेज दिया कुछ विलंब हो जाने पर राणा नरेंद्र सिंह के अधिकारियों द्वारा माता को भला बुरा कहा गया लेकिन नियति का कहा मान कर माता द्वारा बालक काशीराम को समझाया गया और काशीराम अपनी माता के इस अपमान को सहन कर गए कुछ दिनों उपरांत एक दिन जंगल में पशु चराते समय गुरु आश्रम में साधना रत काशीराम के पशु राणा साहब के खेतों में चरने के लिए घुस गए।। राणा के कर्मचारियों ने पशुओं को पकड़ कर बंद कर दिया और उनकी माता को उलाहना देने पहुंच गए।।। माता से कहा कि कल काशीराम को राणा साहब की हवेली भेज देना तुम्हारा लड़का अब बहुत ही उद्दंड हो गया है इसलिए राणा साहब कल उसे दंडित करेंगे माता को अपने बालक की चिंता सताने लगी और शाम को वापस लौटने पर कांशीराम से माता ने सारी बातें बतलाई तब काशीराम ने मां को धैर्य बनाते हुए कहा कि हे माता आप चिंता मत करो जब कल सुबह होगा तब देखा जाएगा क्या पता कल कौन रहे न रहे और इस प्रकार वह भगवान की भक्ति में लीन हो गए और भगवान से प्रार्थना की के है प्रभु आप जो भी करेंगे वह हमें मंजूर होगा सुबह होने पर काशीराम अपने नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पशुओं को लेकर जंगल जाने लगे तो मालूम चला कि रात्रि में राणा साहब की मृत्यु हो गई और राणा साहब का दाह संस्कार हो रहा है काशी राम जी ने माता से कहा मां अब आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है इस प्रकार मां को समझा कर वह गुरु आश्रम आ गए गुरुदेव ने अपनी दिव्य दृष्टि से सारी घटना को देख लिया था उन्होंने आश्रम के द्वार पर ही काशीराम को रोक दिया और कहा कि बेटा तुमने गुरु ज्ञान का दुरुपयोग किया है इसलिए तुम विद्या के योग्य नहीं हो और गुरुदेव ने नाराज होकर काशीराम को दंड स्वरूप श्रापित किया जाओ तुम्हारा यह स्वर्ण काया कुरूप हो जाए गुरु के द्वारा दिए गए बचन फल स्वरुप काशीराम का दिव्य स्वरूप कु रूपित हो गया।। काशीराम जी ने गुरु आज्ञा को शिरोधार्य किया और अपने गुरु के चरणों की वंदना करते हुए अपने व्यवहार के प्रति क्षमा याचना की साथ ही साथ निवेदन किया हे परमपिता परमेश्वर आप तो दयालु हैं कृपालु हैं आप अपने आप विचार करके यह बताएं कि मैंने गलती कहां की परमात्मा के द्वारा जो घटना घटित हुई है उसके लिए मैं कहां दोषी हूं यदि आपकी माता से कोई भी व्यक्ति गलत व्यवहार करेगा तो गुरुदेव क्या आप उसे क्षमा कर देंगे मैं ने भी मेरी माता के प्रति गलत व्यवहार किए जाने पर परमात्मा से प्रार्थना की कि परमात्मा जो चाहे वह दंड दें ,इसमें भगवन मेरी कोई भी त्रुटि नहीं है।। और इस प्रकार अपने गुरुदेव से बारंबार प्रार्थना की और अपने लिए आगामी आदेश की प्रार्थना की गुरुदेव के द्वारा दिव्य दृष्टि से जब संपूर्ण घटनाक्रम का अवलोकन किया गया तब उन्हें काशीराम निर्दोष दिखें और गुरुदेव ने उन्हें क्षमा करते हुए आशीर्वाद दिया कि बेटा अब आप जंगल में जाकर घोर तपस्या करो तथा आदिशक्ति जगत जननी मां भवानी की आराधना कीजिए जिससे वह देवाधिदेव महादेव से प्राप्त आशीर्वाद स्वरुप आपकी काया को कंचन काया कर सकें और कंचन काया प्राप्त करने के पश्चात पुनः मेरे आश्रम में आना इस प्रकार काशीराम गुरु आज्ञा से घने जंगल में चले गए 3 वर्ष की कठोर तपस्या उपरांत मां भगवती ने उन्हें समस्त विद्याओं की पुनः प्राप्ति का वरदान दिया और देवों के देव भगवान श्री महादेव से आशीर्वाद तथा वरदान प्राप्त करने के लिए उनकी साधना करने का उन्हें निर्देश दिया अब तो काशीराम जंगलों के पत्ते खाकर जड़ी बूटी खाकर कंदमूल फल खाकर अपना जीवन को जाने लगे महादेव को प्रसन्न करने के लिए जेठ माह की तपती दोपहरी में उपलों के बीच बैठकर धूनी रमाने लगे । लगभग 6 वर्ष तक नित्य महादेव की साधना की अब तो काशीराम न गर्मी देखते और न सर्दी। घनघोर वर्षा में खड़े होकर भगवान की सेवा करना उनका काम बन गया उनकी काया सूख कर कमजोर हो गई।। आपने जल पीना छोड़ दिया जो जल स्नान के दौरान आपके मुंह में चला जाता उसी से ही जीवन चलने लगा इस प्रकार आप कठिन से कठिन तप करने लगे तब जाकर देवा दे भगवान महादेव ने प्रसन्न होकर उन्हें उनकी कठिन साधना से द्रवित होकर उनकी काया को कंचन काया में परिवर्तित कर दिया इस प्रकार वह गुरु के श्राप से मुक्त हुए इस प्रकार भक्त जनो काशीराम द्वारा अतुलनीय तपस्या की गई और साधारण सा काशीराम एक दिव्य और भव्य संत के रूप में गुरु आश्रम में पधारे अपने गुरु महाराज के श्री चरणों में साष्टांग प्रणाम कर आगे की यात्रा का निर्देश प्राप्त किया क्योंकि जब जनमानस को यह मालूम पड़ा कि कांशीराम ने गुरु कृपा से पुनः दिव्य को प्राप्त किया है उनके दर्शन के लिए जनमानस आश्रम आने लगे और इससे आश्रम की व्यवस्थाओं में अवरोध जानकर काशीराम जी ने गुरुदेव से अपने जीवन के लिए आगे क्या करना है आज्ञा प्राप्त की गुरुदेव ने अपने प्रिय लाडले शिष्य से प्रसन्न होकर हृदय से आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहां कि मेरा आशीर्वाद है आप अब आगे जाकर जीवित समाधि ग्रहण कीजिए और इस राज्य का राजा आप का सर्वप्रथम पूजन करेगा एवं आप लोक देवता के रूप में इस संसार में प्रसिद्ध होंगे मेरा एवं अपना नाम रोशन करोगे मेरा तुम्हें वरदान है कि परमात्मा की कृपा से आने वाले समय में आप दुखियों का दुख दूर करोगे बांझ स्त्रियों को पुत्र दोगे एवं जिनके शरीर किसी भी प्रकार से रोग ग्रस्त होंगे उन्हें भी आप रोग मुक्त करोगे इस प्रकार हमारे अपने काशी बाबा काशीराम जी से बाबा बनने की यात्रा पर निकल पड़े गुरुदेव ने अपने आश्रम की धूनी में से एक जलती हुई लकड़ी उन्हें प्रदान की और कहां कि जहां पर यह लकड़ी अपने कोयले छोड़ दे वही पंच आज्ञा से आप समाधि ग्रहण करोगे इस प्रकार पुण्य पतिता झिलमिल नदी गुरु आश्रम से उनके पीछे पीछे कभी जमीन के अंदर तो कभी बहार बहती हुई चल दी आज भी उसके अवशेष हमें देखने को मिलते हैं इस प्रकार काशी राम ग्राम गूंजना से ग्राम इकौना स्थित वर्तमान समाधि स्थल तक पहुंचे और वहां जलती हुई लकड़ी का कोयला गिरने पर स्थानी य चरवाहों और पंचों से विनती करने लगे के भाइयों आप पंच लोग हमें समाधि लेने के लिए कुछ जगह प्रदान कर दो उपस्थित भक्तजनों ने इस दिव्य आत्मा को जब देखा तो देखते ही रह गई और उन्होंने महाराज श्री से निवेदन किया कि महाराज आप यही रहे हम आपकी कुटिया बना देंगे और आपकी सेवा करेंगे लेकिन काशी बाबा ने उनसे आग्रह किया कि भाइयों मुझे गुरु आज्ञा से अपने शरीर का परित्याग करना है अतः आप मेरी समाधि की व्यवस्था करें

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Shiddh Guru Maharaj

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समाधि स्थल

भक्तजनों आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि श्री काशी बाबा का जन्म और उनके द्वारा देहदान करना यह महज एक संयोग ही माना जाए दोनों ही दिन की तिथि व मास एक ही था अर्थात बाबा महाराज का जन्म चैत्र मास की पंचमी तथा शरीर का परित्याग भी चैत्र मास की पंचमी में ही हुआ इसलिए वर्तमान समाधि स्थल पर प्रजापति समाज के द्वारा बाबा महाराज के मंदिर पर बड़ा भव्य मेले का आयोजन उपरोक्त तिथियों किया जाता है।।।
बाबा महाराज के आग्रह पर ग्रामीण जनों पता पंच जनों के द्वारा गड्ढा खोदकर मिट्टी की एक बड़ी नाद मैं उन्हें भगवान एवं गुरु का ध्यान करते हुए बिठाया गया और बाबा ने अपने तपोबल से अपने प्राणों का विसर्जन किया ब्रह्मांड के माध्यम से अपने प्राणों का परित्याग किया इस प्रकार काशी बाबा ने इस नश्वर संसार का परित्याग करते हुए सूक्ष्म शरीर से लोक कल्याण कार्य करना शुरू कर दिया ग्रामीण जनों ने उक्त गड्ढे को मिट्टी से भर कर उस पर मिट्टी का यह चबूतरा बना दिया कुछ दिनों बाद लोगों ने देखा कि उस चबूतरे में से एक बेरिया का पेड़ हो गया है जो आज लगभग 550 वर्ष होने के उपरांत भी यथावत है और उसमें लगभग वर्षभर फल आते रहते हैं

ग्वालियर के महाराज श्रीमंत महादजी सिंधिया द्वारा प्रथम पूजन एवं लोक देवता की उपाधि प्रदान करना भक्तजनों समयानुसार हम और आप समय चक्र अनुसार बहुत सी चीजों को भूल जाते हैं इसी प्रकार जंगल में ली गई समाधि को स्थानीय जन विस्मृत कर चुके थे यदि वहां कुछ शेष था तो मात्र मिट्टी का वह चबूतरा और कल कल करती हुई झिलमिल नदी का पवित्र जल आसपास जंगल में कटीली झाड़ियां हो गई थी विभिन्न प्रजाति के वनस्पति पैदा हो चुके थे जिनमें करील की झाड़ियां केले के बड़े-बड़े घनघोर वृक्ष जिन से गुजरने में लोगों को बड़ा भय लगता था इस प्रकार काफी समय गुजर गया वर्तमान वर्ष 2022 से लगभग 200 वर्ष पूर्व ग्वालियर पर सिंधिया राजवंश का आधिपत्य था जिसके प्रथम महाराज महादजी सिंधिया जी थे जिन्हें एक पैर में चोट लग जाने की वजह से लंगड़ा महाराज भी कहा जाता था बड़े ही दयालु तथा धार्मिक प्रवृत्ति के शक्तिशाली महारा ज थे आप एक कुशल प्रशासक कुशल नेतृत्व करता महान सेनापति एवं प्रजा पालक के रूप में विख्यात थे परंपरा अनुसार आपको भी जंगल में आहट करने का शौक था और इसी प्रकार के एक भ्रमण पर आप तत्कालीन बेहट के पास स्थित ग्राम इकौना के जंगल में शिकार हेतु गए हुए थे आपके शिकारी दल में तमाम सारे हाथी घोड़े और शिकारी दल शामिल थे श्री काशी बाबा महाराज ने अपनी माया से आपको भ्रमित किया और आपके समस्त दलबल को आगे बढ़ने से रोक दिया जब आप कादल बल आगे नहीं जा सका तो आपने उसका कारण जानना चाहा आपके एक चतुर मंत्री के द्वारा जब ग्रामीण जनों और चरवाहों से इस घटना का जिक्र किया गया तो ग्रामीण जनों के द्वारा बताया गया कि यहां पर हमारे पूर्वजों के बताए अनुसार कुम्हार जाति के एक संत ने जीवित समाधि ली है और उनकी कृपा से हमें इस जंगल में कभी भी जंगली जानवरों का भय नहीं रहता फिर आपका यह दल बल क्यों नहीं आगे बढ़ रहा अब आप ही समझ लो महाराज श्री को मंत्री द्वारा संपूर्ण घटनाक्रम से अवगत कराया गया तब महाराज श्री अपने रथ से उतर कर आए और उन्होंने चबूतरे के चारों तरफ अपने कर्मचारियों से साफ सफाई करा कर महाराज श्री से निवेदन किया कि यदि आपने हमें आगे बढ़ने से रोका है तो हम आपका आदेश मानते हैं आप हमें हमारे कार्य के लिए जाने दें वापसी में लौटने पर हम आपका स्वयं पूजन करेंगे और आप का आशीर्वाद ग्रहण करेंगे काशी बाबा महाराज के द्वारा ग्वालियर नरेश को आगे बढ़ने दिया गया शिकार उपरांत वापस लौटने पर ग्वालियर महाराज के द्वारा कच्चे मिट्टी के चबूतरे की जगह पर पक्का चबूतरा बनवाया गया और एक धर्मशाला का भी निर्माण किया गया तथा यात्रियों के पेयजल के लिए एक कुआं भी खुद वाया गया जिसमें से कुआं आज भी उसी स्थान पर है समयानुसार प्रजापति समाज के द्वारा वर्तमान में उस धर्मशाला के स्थान पर बड़े-बड़े कमरों का निर्माण कराया गया है तथा भव्य एवं आकर्षक बाबा महाराज का मंदिर निर्मित किया जाकर जनता जनार्दन के साथ समर्पित किया गया है वर्तमान में बाबा महाराज के मंदिर पर बहुत से निर्माण कार्य हो चुके हैं और कुछ चल रहे हैं संपूर्ण कार्य का देखरेख निर्वहन काशी बाबा ट्रस्ट के माध्यम से किया जा रहा है जोक एक बहुत ही नेक एवं पुण्य कार्य है मूल स्थान बेहट ग्राम इकौना मंदिर से आशीर्वाद एवं प्रेरणा लेकर ग्वालियर अंचल में बहुत से नगरों एवं गांवों में बाबा महाराज की मंदिर अर्थात थान बने हुए हैं जैसे मालनपुर मुरैना जोरा कैलारस आदि कई स्थानों पर काशी बाबा के मंदिर बने हुए हैं जिस में से जोरा पगारा रोड वार्ड क्रमांक 18 में बने हुए भव्य मंदिर को देखकर भक्तजन बेहट स्थित मंदिर से तुलना करने लगते हैं इसी के साथ कैलारस में चचेड़ी वाले प्रजापति परिवार के द्वारा मंदिर भी विख्यात है जोरा मंदिर पर श्री सोबरन सिंह प्रजापति मिस्त्री साहब भगत जी के रूप में वर्ष 1980 से सेवारत होकर जनकल्याण कर रहे हैं आपके द्वारा भक्त जनों के सहयोग से वर्ष 2002 में वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था इसी प्रकार जोरा में वार्ड क्रमांक 11 में भी श्री भगवान लाल प्रजापति शिक्षक के द्वारा बाबा महाराज का मंदिर निर्मित किया जा कर पूजा अर्चना की जा रही है कैलारस के मंदिर पर श्री घनश्याम प्रजापति जी के द्वारा मंदिर पर जन कल्याण के कार्य किए जा रहे हैं भक्तजनों श्री काशी बाबा की कृपा से भक्तजनों के बड़े से बड़े कार्य संपन्न हुए हैं आपके प्रिय सम्मान के पात्र चरण सेवक इस कहानी के लेखक के जीवन में भी आज जो कुछ भी है वह काशी बाबा महाराज की असीम कृपा का ही प्रतिफल है लेखक ने वर्ष 1995 से काशीवा मंदिर के सानिध्य में उनके श्री चरणों में बैठकर प्रजापति समाज के उत्थान में विकास के लिए कार्य करने का बीड़ा ग्रहण किया जिसके फलस्वरूप श्री काशी बाबा सेवा समिति के माध्यम से वर्ष 2001 से लेकर वर्ष 2006 तक आदर्श प्रजापति शुभ विवाह सम्मेलन का आयोजन प्रारंभ किया गया था जिसमें लगभग 125 कन्याओं के विवाह संपन्न हुए और उन्हीं के आशीर्वाद से वर्ष 2004 ((25 जनवरी को)) मैं पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो आइए भक्तजनों इसी श्रंखला में श्री काशी बाबा महाराज की कृपा से जिन जिन भक्तों को बाबा की कृपा प्राप्ति हुई हो वह भी इस कथा में अपने संस्मरण शामिल कर हमें कृतार्थ करने का कष्ट करें जय श्री सिद्ध गुरु महाराज जय श्री काशी बाबा महाराज बहुत-बहुत धन्यवाद

By : S.N. Prajapati Joura 

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